
जापान के हिरोशिमा क्षेत्र,हत्सुकायची में स्थित मियाजिमा द्वीप, जिसे इत्सुकुशिमा द्वीप भी कहते है, में विश्व प्रसिद्ध इत्सुकुशिमा शिंतो समाधि स्थित है । यह सेतो अंतःस्थलीय सागर पर तैरती हुई दिखाई देती है तथा सागर में द्वीप पर तैरने वाली विश्व की एकमात्र समाधि है।मियाजिमा द्वीप पुरातन काल से ही शिंतो मतावलम्बियों की आस्था का केंद्र रहा है। संभवतः यहाँ पर प्रथम शिंतो भवनों का निर्माण छठी शताब्दी में हुआ होगा। वर्तमान संरचनाओं -भव्य तोरी गेट, सागर में स्तंभों पर टिके भवन, पाँच मंज़िला पेगोडा, का निर्माण काल 12वीं शताब्दी है। एक-दूसरे से जुड़े भवनों का कलात्मक सौंदर्य तथा तकनीकी कौशल दर्शनीय है। विभिन्न रंगों से सुशोभित पर्वतों तथा सागर के मध्य स्थित ये भवन अद्वितीय मनोहारी हैं। ये प्रकृति तथा पुरुष का अनुपम संगम स्थल हैं। 1996 ई में यूनेस्को की विश्व विरासत समिति ने इस क्षेत्र को विश्व विरासत की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता प्रदान कर दी थी।
तोरी गेट-
मियाजिमा द्वीप पर स्थित इत्सुकुशिमा समाधि का जल पर तैरता हुआ भव्य सिंदूरी ‘तोरी’ गेट विशिष्ट आकर्षण का केंद्र है –

यहाँ तक पंहुचने के लिए नौका लेनी पड़ती है। सागर की लहरों पर तैरती नौका पर खड़े हो कर चारों ओर की मनमोहक दृश्यावली देखने पर तन-मन में असीम ऊर्जा का संचरण हो जाता है। तट से तोरी गेट तक पंहुचने में पाँच मिनट लगते हैं। सिंदूरी रंग का यह गेट समाधि के पवित्र क्षेत्र का प्रवेश द्वार है। यह सदियों पुराने कपूर की लकड़ी से बना है। इसका निर्माण 1168 ई में हुआ था। वर्तमान गेट का निर्माण 1875 ई में हुआ था। यह 16 मीटर ऊंचा है तथा इसका वज़न 60 टन है। पानी का बहाव तेज़ होने पर यह जल पर तैरता हुआ दिखाई देता है। कम बहाव होने पर पैदल भी पंहुचा जा सकता है। उस समय लोग तट पर सीपियाँ इकट्ठी करते दिखाई देते हैं। यहाँ से समाधि का चित्ताकर्षक दृश्य दिखाई देता है-

इतिहास-
जापान के हिरोशिमा क्षेत्र में हत्सुयाकची नगर में स्थित यह समाधि ‘अकी’ प्रांत की प्रमुख समाधि है। प्रारम्भ में इसका निर्माण स्थानीय मछुआरों ने सामान्य शिंतो समाधि के रूप में करवाया था।811 ई में यहाँ पर ‘सएकी कुरमोटो’ ने बड़ी संरचना का निर्माण हुआ। आरंभ में यह समाधि शिंतो के ‘तूफान देवता’ की तीन पुत्रियों को समर्पित थी। कमकुरा काल (1185-1333) में जापान के सात सौभाग्य सूचक देवताओं में से एक ‘बेनटेन’ की भी आराधना होने लगी। ‘बेनटेन’ प्रेम, तर्क, ज्ञान, साहित्य, संगीत और सुख-समृद्धि प्रदान करने वाली हिन्दू-बौद्ध मूल की देवी है।उस समय इत्सुकुशिमा में व्यापार व सागर के यात्रियों की संरक्षक देवी के रूप में आराधना होती थी। सभी देवताओं की पूजा-अर्चना एक ही स्थान पर होने के कारण इस क्षेत्र को ‘इत्सुकुशिमा’ की संज्ञा दे दी गयी। इत्सुकुशिमा का अर्थ है-‘देवताओं को समर्पित द्वीप’।
समाधि परिसर में जल के ऊपर स्तंभों पर निर्मित 56 काष्ठ संरचनाएँ हैं। अनेक संरचनाएँ गलियारों तथा पगडंडियों से जुड़ी हैं।

1168 ई में महान शक्तिशाली योद्धा तायरा-नो-कियोमोरी ने इस भव्य समाधि का निर्माण करवाया था। वह युद्धक्षेत्र में विजयप्राप्ति तथा सुख समृद्धि का कारण मियाजिमा में विद्यमान जल देवियों की कृपा दृष्टि मानता था। समाधि सुसानो-ओ-नो-मिकातो की पुत्रियों, सागर,तूफान तथा सूर्यदेवी के भाई अमातरेसू की तीन देवियों को समर्पित है। तायरा-नो-कियोमोरी ने 431.2 हेक्टेयर भूमि पर समाधि निर्मित करवायी। दो परिसरों में 17 भवन तथा तीन अन्य संरचनाएँ स्थित हैं। इनके अतिरिक्त अन्य छोटे-छोटे भवन, मिसेन पर्वत के इर्द-गिर्द आदिकालीन वन तथा विचित्र आकार की चट्टानें हैं। कियोमोरी ने समाधि निर्माण पर अपार धनराशि खर्च की। वह अपने मित्रों,सहयोगियों तथा राजकीय अतिथियों को यह स्थान दिखाने में गौरवान्वित अनुभव करता था। उसने समाधि का निर्माण खाड़ी पर पुलनुमा संरचनाओं के रूप में करवाया ताकि यह पवित्र द्वीप से जल पर तैरती दिखाई दे-

यह आध्यात्मिक शक्ति तथा प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत समन्वय है। जापान की तीन उत्कृष्ट दृश्यावलियों में से एक है। कालांतर में अन्य महाद्वीपीय धर्मों के प्रभाव तथा अपनी निजी परम्पराओं के साथ जापानी जनजीवन का अविभाज्य अंग बन गया।
स्थापत्य शैली-
इत्सुकुशिमा समाधि जापान की पारंपरिक शिंतो स्थापत्य शैली में निर्मित है। इस में उपासना का केंद्र प्रकृति के उपादान पर्वत, नदी, चट्टानें, वृक्ष पशु विशेष रूप से सूर्य , चंद्रमा होते हैं। इनमें दैवी शक्तियाँ निहित रहती हैं। समाधि के भवन भव्य आवासीय शिंतो स्थापत्य शैली का अद्वितीय उदाहरण हैं। इनमें मानव निर्मित तथा प्राकृतिक तत्त्वों का अपूर्व सम्मिश्रण देखने को मिलता है।
समाधि बौद्ध तथा शिंतो की मिश्रित स्थापत्य शैलियों में निर्मित है। तोरी गेट के सामने तथा पृष्ठभूमि में पवित्र मिसेन पर्वत के मध्य निर्मित सागर की मनमोहक दृश्यावली को दर्शाते अनेक लम्बे लकड़ी के गलियारों से जुड़े विशाल भवन प्रमुख रूप से शिंदेन -जुकुरी शैली; हिआन कालीन (794-1185) इम्पीरियल स्थापत्य शैली में निर्मित हैं। यद्यपि इन के लाल स्तंभों पर- शिंतो स्थापत्य शैली का प्रभाव देखने को मिलता है तथापि ग्लेजड टाइल्स के स्थान पर साइप्रस की छाल से बनी छतें इम्पीरियल स्थापत्य शैली की द्योतक हैं।
परिसर में चिकित्साशास्त्र के आचार्य बुद्ध याकुशी को समर्पित पाँच मंज़िला बौद्ध पेगोडा है। इसका निर्माण 1407 ई में हुआ था।

परिसर का विशालतम भवन सेंजोककू असेंबली हाल है। प्रतिष्ठित राजनयिक और जनरल तोयोतोमी हिदेयोशी (1587-1598) ने 16वीं शताब्दी में इसका निर्माण करवाया था। जापानी शब्द ‘सेंजोककु’ का अर्थ है- मैट अर्थात 18 वर्ग फुट। इसकी विशिष्टता यह है की हाल लगभग 857 मैट पर निर्मित है। यह बौद्ध भिक्षुओं के प्रार्थना करने के लिए बनवाया गया था। वर्तमान में इस का उपयोग इसके संस्थापक की समाधि के रूप में होता है।

खूबसूरत रंगों से दमकते अंतहीन गलियारे देख कर पर्यटक मंत्रमुग्ध रह जाते हैं। स्तंभों पर स्थित गलियारों से सागर का अनूठा दृश्य,खारे पानी की सौंधी-सौंधी महक से आभास हो जाता है कि समाधि वास्तव में जल पर स्थित है। प्रत्येक स्तम्भ के आगे और पीछे एक अतिरिक्त पाया है। यह रयोबो शिंतो शैली का प्रतीक है। अप्रत्यक्ष रूप से यहाँ शिंतो स्थापत्य शैली पर मध्यकालीन जापानी स्थापत्य शैली का प्रभाव भी परिलक्षित होता है।
नोह रंगमंच-

प्रमुख समाधि के सामने ‘नोह’ रंगमंच है। इसका निर्माण काल 1590 ई के आसपास है। विशिष्ट अवसरों पर जापान के पारम्परिक नृत्य ‘नोह’ की प्रस्तुति होती है। यह वर्ष में नौ बार प्रस्तुत किया जाता है। इसके अतिरिक्त अन्य रंगारंग कार्यक्रम भी आयोजित होते रहते हैं। प्रमुख हैं-जल पर शानदार आतिशबाज़ी का प्रदर्शन तथा वाद्ययंत्रों पर संगीत की प्रस्तुति-‘कंगेन उत्सव’।
कोषागार-
कोषागार में संरक्षित हैं प्रसिद्ध हेयके नोक्यो अर्थात तायरा के धर्मसूत्रों के 32 हस्तलिखित अभिलेख। इनमें कमल सूत्र तथा अन्य सूत्रों को कियोमोरी, उसके पुत्रों तथा अन्य परिजनों ने लिपिबद्ध किया था। प्रत्येक व्यक्ति ने केवल एक अभिलेख लिखा था।
इस पवित्र शिंतो समाधि को प्रदूषण मुक्त रखना अनिवार्य है। 1876 ई से इसके समीप जन्म-मृत्यु का निषेध है। आज भी गर्भवती महिलाएं प्रसव के समय अन्यत्र चली जाती हैं। गंभीर रूप से बीमार तथा वृद्ध जन जिनकी मृत्यु निकट है, दूर चले जाते हैं। द्वीप पर मृत का अंतिम संस्कार करना वर्जित है।
मियाजामा द्वीप-

मियाजामा का पूरा द्वीप समाधि के अंतर्गत आता है। इस द्वीप पर ईश्वर का आवास माना जाता है। जनसामान्य की इसमें अटूट आस्था है। जापान के पौराणिक आख्यानों के अनुसार यहाँ पर जल से सम्बद्ध अनेक देवियों का वास है। सागर पर स्थित समाधि की दृश्यावली मुग्ध कारी है। हो भी क्यों न? अनेक दैवी शक्तियों का वासस्थल जो है।
सूर्यास्त के बाद काले सागर पर अगणित बिजलियों के प्रकाश में आलोकित समाधि को देख कर पर्यटक भाव विभोर हो जाते हैं। यहाँ पर आने का सर्वोत्तम समय पतझड़ ऋतु है। उस समय पूरा द्वीप शरत कालीन सौन्दर्य से सजा रहता है। यहाँ आने पर जापान की गूढ रहस्यात्मकता और सौन्दर्य की अनुभूति होती है।
पाँच सितम्बर, 2004 को भयंकर सोंगडा तूफान में समाधि को भारी क्षति पंहुची थी। चलने के लिए बने पुल, छतें, आंशिक रूप से क्षति ग्रस्त हो गए थे। उस समय मरम्मत करने के लिए समाधि को अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया था।
हिरोशिमा शांति म्यूज़ियम-
चुकोगु जिले का प्रमुख नगर है हिरोशिमा। द्वितीय विश्व महायुद्ध में वहाँ पर अणु बमों की वर्षा हुई थी। असंख्य लोग काल कवलित हो गए थे। यहाँ पर स्थित म्यूज़ियम में उस विध्वंसक घटना की स्मृतियाँ संग्रहीत है।

मियाजामा द्वीप जाने के लिए हिरोशिमा से ‘मियाजीमगुची’ के लिए ट्रेन लेनी पड़ती है। यह समीपस्थ रेलवे स्टेशन है। ट्रेन 25 मिनट में वहाँ पंहुचा देती है। मियाजीमगुची से मियाजिमा के तोरी गेट तक जाने के लिए नाव लेनी पड़ती है। नाव पाँच मिनट में ‘तोरी’ गेट तक पंहुचा देती है। सम्पूर्ण विश्व के पर्यटक इस समाधि को देखने के लिए आते हैं।
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प्रमीला गुप्ता