
श्री लंका की राजधानी कोलम्बो से 150 कि.मी दूर स्थित दंबूला के गुफा मंदिर ‘दंबूला के स्वर्ण मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हैं।यह श्रीलंका का सर्वाधिक विस्तृत एवं संरक्षित गुफा मंदिर परिसर है। यह समीपवर्ती समतल क्षेत्र से 160 मीटर ऊंची चट्टान पर अवस्थित है। चट्टान के आसपास लगभग 90 गुफाएँ हैं। प्रमुख आकर्षण का केंद्र पाँच गुफाएँ हैं। ये अपनी स्थापत्यशैली तथा भित्तिचित्रों के कारण विश्वविख्यात हैं। इनमें निर्मित प्रतिमाएँ एवं भित्तिचित्र भगवान बुद्ध के जीवन से सम्बद्ध हैं। इन गुफाओं में भगवान बुद्ध की 153 प्रतिमाएँ, श्री लंका के तीन सम्राटों तथा चार अन्य देवी-देवताओं, जिन में विष्णु व गणेश की प्रतिमाएँ भी सम्मिलित हैं, स्थित हैं। गुफाओं के विभिन्न भागों में लगभग 2100 वर्ग मीटर में दानव ‘मरा’ की माया तथा भगवान बुद्ध के प्रथम उपदेश को आकर्षक रूप में उत्कीर्ण किया गया गया है।
दंबूला का भव्य स्वर्ण मंदिर-

इतिहास एवं निर्माण-
श्रीलंका में बौद्धधर्म के प्रवेश से पहले प्रागैतिहासिक काल में इन गुफाओं में श्री लंका के मूलवासियों के रहने के प्रमाण उपलब्ध हैं। दंबूला गुफा परिसर के समीप के ईबंकटुवा क्षेत्र में प्राप्त 2700 साल पुराने नरकंकाल इस के साक्षी हैं।
यह गुफा मंदिर परिसर ई.पू पहली शताब्दी में अस्तित्व में आया था। इस मंदिर परिसर के सर्वाधिक चित्ताकर्षक गुफाएँ झुकी हुई चट्टानों के भीतर अवस्थित हैं। इनमें असंख्य भव्य नक्काशीदार भित्तिचित्र उत्कीर्ण हैं। इनके अतिरिक्त 1938 ई में स्थापित मेहराबदार स्तंभों तथा भव्य प्रवेशद्वार ने इनके सौंदर्य में अत्यधिक वृद्धि कर दी है। गुफाओं के आंतरिक भाग, विशेषरूप से छतों पर, में धार्मिक चित्र उत्कीर्ण हैं। इनमें भगवान बुद्ध, बोधिसत्वों के साथ-साथ अन्य देवी-देवताओं का चित्रांकन भी है। भगवान बुद्ध को विशेष रूप से प्रतिष्ठित करने के कारण ये गुफाएँ बौद्ध विहार कहलाती हैं।

पाँच गुफाएँ-
मंदिर में विभिन्न आकार की पाँच भव्य गुफाएँ हैं। अनुराधापुर व पोलोनरुवा साम्राज्य के अंतर्गत निर्मित ये गुफाएँ श्री लंका में स्थित अनेक गुफा मंदिरों में सर्वाधिक भव्य तथा चित्ताकर्षक हैं। ये 150 मीटर ऊंची चट्टान पर स्थित है। यहाँ जाने के लिए दंबूला चट्टान के ढलुआं रास्ते से हो कर गुजरना पड़ता है। चारों तरफ की मनमोहक दृश्यावली, 19 कि.मी दूर स्थित सिगिरिया के किले का आकर्षक दृश्य देख कर पर्यटक मंत्रमुग्ध रह जाते हैं। साँझ के झुटपुटे में असंख्य पक्षी गुफा के प्रवेश द्वार पर आ बैठते हैं। सबसे बड़ी गुफा पूर्व से पश्चिम तक 52 मीटर लम्बी, प्रवेशद्वार से पीछे तक 23 मीटर चौड़ी और सर्वाधिक ऊंचाई 7 मीटर है। इनमें वालागम्बा, निशंक मला एवं भगवान बुद्ध के प्रिय शिष्य आनन्द का भी चित्रण है।
गुफा 1-दैवी सम्राट गुफा-

देवराज गुफा ‘दैवी सम्राट गुफा’ के नाम से प्रसिद्ध है पहली गुफा। प्रवेश द्वार पर लिखित पहली शताब्दी के ब्राह्मी अभिलेख में इसका निर्माण काल पहली शताब्दी है। इस गुफा में चट्टान काट कर भगवान बुद्ध की 14 मीटर लम्बी लेटी हुई प्रतिमा प्रतिष्ठित है। बुद्ध के चरणों में उनके प्रिय शिष्य आनन्द तथा सिर की ओर विष्णु की प्रतिमा है। माना जाता है कि इन की दैवी शक्तियों से ही इस गुफा निर्माण हुआ था। अनेक बार इस में रंग-रोगन हुआ। अंतिम बार संभवतः 20वीं सदी में पेंट हुआ था।
गुफा 2, महान सम्राटों की गुफा-

यह इस परिसर की सबसे बड़ी गुफा है। इस के भीतर भगवान बुद्ध की विभिन्न मुद्राओं में 56 प्रतिमाएँ हैं। इनके अतिरिक्त सम्राट तथा विष्णु की प्रतिमाएँ भी है। श्रद्धालु इन पर पुष्पमाल अर्पण करते हैं। ई.पू पहली शताब्दी में विहार को प्रतिष्ठित करने वाले सम्राट वत्तागामिनी अभय, 12वीं शताब्दी में 50 प्रतिमाओं को स्वर्णमंडित करवाने वाले सम्राट निशंक मला की प्रतिमाएँ भी स्थित हैं। इसी कारण से इस गुफा को ‘महान सम्राटों की गुफा’ अथवा ‘महाराजा गुफा’ कहा जाता है। चट्टान को काट कर बनाई गयी गुफा में भगवान बुद्ध की बायीं तरफ बोधिसत्व मैत्रेय तथा अवलोकितेश्वर की काष्ठ प्रतिमाएँ हैं। यहाँ पर एक झरना भी है जिससे पानी टपकता रहता है। कहा जाता है कि पानी में चिकित्सकीय गुण विद्यमान हैं। गुफा की छत पर 18वीं सदी में भगवान बुद्ध के जीवन से सम्बद्ध चित्र उत्कीर्ण हैं। कुछ चित्रों में देश के इतिहास की महत्त्वपूर्ण घटनाओं का भी चित्रण है।
गुफा 3,महा अलूत विहार अथवा महान बौद्ध विहार-
प्रख्यात बौद्ध पुनरुद्धारक सम्राट किर्ति राज सिंह के शासनकाल में पारम्परिक कैंडी शैली में छत तथा दीवारों पर चित्रांकन किया गया था। भगवान बुद्ध की 50 प्रतिमाओं के अतिरिक्त यहाँ पर सम्राट की प्रतिमा भी स्थित है। मंदिर के इन कक्षों में सिंहला मूर्ति कला तथा सिंहल कला के कई युगों का इतिहास निहित है। भगवान बुद्ध की प्रतिमाएँ विभिन्न आकार व मुद्राओं में निर्मित हैं। सबसे ऊंची प्रतिमा की ऊंचाई 15 मीटर है। एक गुफा की छत पर बुद्ध के 1500 चित्र उत्कीर्ण हैं।

गुफा 4,5 पश्चिम विहार एवं देविना अलूत विहार-
ये दोनों गुफाएँ पहली तीन गुफाओं की अपेक्षा छोटी हैं तथापि दोनों ही गुफाओं की स्थापत्य कला अद्वितीय हैं। दोनों की आंतरिक साज-सज्जा व भगवान बुद्ध की प्रतिमाएँ दर्शनीय हैं।
संरक्षण-
विशिष्ट स्थापत्यशैली एवं कला के कारण 1991 ई में इस ऐतिहासिक परिसर को यूनेस्को की विश्व विरासत समिति ने इसको विश्व विरासत के रूप में मान्यता प्रदान कर दी थी। विश्व विरासत घोषित किए जाने के बाद इसके संरक्षण व संवर्धन में तीव्रता से विकास हुआ। इस परिसर को अधिकाधिक वैज्ञानिक तरीके से संरक्षित और आकर्षक बनाए रखने के लिए सतत प्रयास किए जा रहे हैं। भित्तिचित्रों के संरक्षण पर अधिक बल दिया जा रहा है। 1960 के दशक में इन भित्तिचित्रों की साफ-सफाई करवायी गयी थी। 1930 के दशक में निर्मित संरचनाओं पर 1982 के बाद अधिक ध्यान केन्द्रित किया गया। इस परियोजना में श्री लंका की विभिन्न एजेंसियों के साथ यूनेस्को महत्त्वपूर्ण सहयोग प्रदान कर रहा है।
दंबूला गुफा मंदिर परिसर सदैव धार्मिक स्थल के रूप में सक्रिय रहा है। दर्शनीय हैं बौद्ध भिक्षुओं की चित्ताकर्षक प्रतिमाएँ-

यूनेस्को द्वारा निर्धारित विश्व विरासत के मानकों की आपूर्ति करने के विचार से विभिन्न संरक्षण परियोजनाओं के अंतर्गत इसके अवसंरचनात्मक विकास पर विशेष ध्यान केन्द्रित किया गया है। इस परिसर को आकर्षक बनाने के लिए विश्वस्तरीय प्रकाश की व्यवस्था की गयी वहीं पर्यटकों के लिए संग्रहालय तथा सुविधा केंद्र भी स्थापित किए गए।
यहाँ स्थित पुरातात्त्विक संरचनाओं को सुरक्षित रखने के विचार से वर्ष 2003 में यूनेस्को की निरीक्षण टीम ने परिसर के संरक्षित भाग की वृद्धि करने का प्रस्ताव रखा था। बाद की परियोजनाओं के अंतर्गत गुफाओं व अन्य स्थानों की साफ-सफाई की अपेक्षा इस परिसर को मानवीय एवं पर्यावरणीय क्षति से सुरक्षित रखने पर अधिक बल दिया गया। मंदिर तक पंहुचने के लिए 360 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं-

मंदिर के प्रवेश द्वार के समीप पंहुचते ही पर्यटक वहाँ की मुग्धकारी दृश्यावली को देख कर सारी थकान भूल जाते हैं।
अन्य दर्शनीय स्थल-
विश्व विरासत स्वर्ण मंदिर के अतिरिक्त भी दंबूला में कई अन्य दर्शनीय स्थल हैं।
नाग केसर वन (Iron Wood Forest)

किंवदंती के अनुसार नागकेसर वन (Iron Wood Forest) में 10वीं सदी में सम्राट दपूला ने एक पूजा स्थल का निर्माण करवाया था। इसे ‘जथिका नमल उयना’ भी कहते हैं। श्री लंका के राष्ट्रीय वृक्ष ‘ना’ के इस घने वन में ट्रेकिंग का सुंदर मार्ग है। पर्यावरण के दृष्टिकोण से वन अतीव महत्त्वपूर्ण है। पर्यावरणविदों तथा प्रकृति के शोधार्थियों के लिए यह अध्ययन का विषय है।
गुलाबी पत्थरों का पहाड़ (Pink-Quartz Mountain)-

गुलाबी पत्थरों का पर्वत लगभग 500 मिलियन पुरानी पर्वत शृंखला है। यहाँ पर सफ़ेद गुलाबी तथा जामुनी रंग के पत्थरों का संग्रह है। दक्षिण एशिया की सर्वोच्च पर्वत शृंखला के शिखर पर पैदल चढ़ कर पर्यटक मीलों दूर की मुग्धकारी दृश्यावली का आनंद लेने के लिए आते हैं। गुलाबी पत्थरों का होने पर भी इस को उस रूप में पहचान पाना कठिन है।
रनगिरि दंबूला अंतर्राष्ट्रीय स्टेडियम-

दंबूला के समीप मध्य प्रांत में दंबूला मंदिर से अधिग्रहीत 60 एकड़ भूमि पर निर्मित है ‘रनगिरि दंबूला अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम’। इस में 16,800 दर्शकों के बैठने की व्यवस्था है। यहाँ से दंबूला टैंक और दंबूला चट्टान दिखाई देती है। स्टेडियम का निर्माण कार्य रिकार्ड 167 दिनों में पूरा हो गया था। मार्च,2000 में श्रीलंका व इंग्लैंड के बीच एक दिवसीय क्रिकेट मैच से इसका शुभारंभ हुआ था। 2003 ई में यहाँ पर फ़्लडलाइट्स लगाई गयी।
विशेष-
बंदरनायके अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, कटुनयका पूरे विश्व के साथ जुड़ा हुआ है। यहाँ से दंबूला जाने के लिए सुविधापूर्वक बस अथवा टैक्सी मिल जाती है। दंबूला श्रीलंका के प्रमुख नगरों से सड़क मार्ग से जुड़ा है। यह श्रीलंका की राजधानी कोलम्बो के समीप है अतः कोलम्बो अथवा कैंडी से किराए पर कार ले कर जाना एक बेहतर विकल्प है।
मई-अगस्त, अक्तूबर-जनवरी की वर्षा ऋतु को छोड़ कर बाकी समय यहाँ की यात्रा सुखद है। दंबूला में विशाल, अत्याधुनिक मार्केट है। गलियों में बाइसिकलों, कृषि उपकरणों, घर में इस्तेमाल होने वाले बर्तनों व अन्य सामान का ढेर देखा जा सकता है।
वास्तव में दंबूला गुफाओं की सैर स्वयं में ‘एक पंथ दो काज’ है। प्रकृति के संसर्ग में कला, सौंदर्य की अनुभूति।
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प्रमीला गुप्ता