ओटोमन शैली में निर्मित भव्य, विशिष्ट संरचनाओं में से एक सेलेमिये मस्जिद को ‘नगर का ताज’ कहा जाता है। इसको ‘सुल्तान की आखिरी बिल्डिंग’ भी कहा जाता है। 16वीं सदी की यह स्थापत्य शैली ओटोमन साम्राज्य की भव्यता तथा राजनैतिक शक्ति की परिचायक थी। मस्जिद का सौंदर्य देख कर पर्यटक,दर्शक मंत्रमुग्ध रह जाते हैं।
निर्माण –
आकाश को छूती,सुरुचिपूर्ण, सुव्यवस्थित गुंबद, ऊंची पतली मीनारें ओटोमन कालीन मस्जिद स्थापत्यशैली की विशेषता रही हैं। तुर्की के एडरिने नगर में स्थित सेलेमिये मस्जिद स्थापत्य शैली के दृष्टिकोण से ऐसी ही एक आश्चर्यजनक संरचना है। प्रख्यात वास्तुशिल्पी सिनान की देखरेख में इसका निर्माणकार्य सम्पन्न हुआ था।
सेलेमिये मस्जिद तुर्की के महानगर एडरिने में स्थित है। सुलेमान महान के बेटे सलीम द्वितीय ने 1568-1574 ई के बीच इसका निर्माण करवाया था। एडरिने सलीम का प्रिय नगर था। जब उसके पिता 1548 ई में पर्शिया में विजय अभियान चला रहे थे तब वह इस नगर के बाहर शिकार का आनंद लेता था।
सेलेमिये मस्जिद का निर्माण ओटोमन साम्राज्य के उत्कर्ष काल में हुआ था। साम्राज्य के विस्तार केसेलेमिये साथ-साथ सुल्तान सलीम ने नगर के केन्द्रीकरण की आवश्यकता को अनुभव किया। तत्कालीन वास्तुशिल्पी सिनान से मस्जिद के निर्माण के लिए अनुरोध किया,ऐसी मस्जिद जो अपने आप में विशिष्ट हो तथा नगर के केन्द्रीकरण की आवश्यकता को पूरा कर सके।
सलीम ने इस स्थान का चुनाव केवल अपनी पसंद के आधार पर नहीं किया था बल्कि इसके भौगोलिक, ऐतिहासिक महत्त्व को भी ध्यान में रखा था। ओटोमन साम्राज्य के यूरोपीय क्षेत्र में स्थित एडरिने 15 वीं शताब्दी में इस्तांबुल से पहले ओटोमन साम्राज्य की राजधानी रह चुका था तथा सत्रहवीं शताब्दी तक साम्राज्य का दूसरा महत्त्वपूर्ण नगर था। ओटोमन साम्राज्य में प्रवेश करने के लिए यूरोपवासियों को एडरिने से हो कर गुजरना पड़ता था। यात्रियों पर ओटोमन साम्राज्य की शान-ओ-शौकत प्रदर्शित करने के विचार से सुल्तान सलीम द्वितीय ने इस भव्य संरचना के निर्माण का निर्णय लिया। यही नहीं उस समय इस्तांबुल में गोल्डन हॉर्न तथा पहाड़ियों पर अनेक भव्य मस्जिदें निर्मित थीं अतः एडरिने नगर के सौंदर्य में वृद्धि करने के लिए एक भव्य मस्जिद के निर्माण का विचार सर्वथा उपयुक्त था। कावक मेदिनी उपनगर में निर्मित सेलेमिये मस्जिद परिसर की अत्याधुनिक स्थापत्यशैली के सामने पुरातन, पारम्परिक शैली धूमिल पड़ गयी थी।
संरचना –
सेलेमिये मस्जिद के निर्माण में एक सीमारेखा थी। मस्जिद की इमारत बाहरी गुंबदों तथा भीतर से एकीकृत होनी चाहिए थी न कि अलग-अलग खंडों में विभाजित। इस लक्ष्य प्राप्ति के लिए एक ही मार्ग था-वह था अनेक गुंबदों के स्थान पर केंद्र में एक विशाल गुंबद का निर्माण। सिनान ने ऐसा ही किया। प्रख्यात लेखक ओरहान पामुक के अनुसार-” केंद्र में निर्मित गुंबद साम्राज्य के राजनैतिक, आर्थिक परिवर्तनों के केन्द्रीकरण का परिचायक है ।” सिनान के एक अन्य मित्र लेखक के विचार में-‘ सिनान ने मस्जिद के निर्माण की प्रेरणा इस्तांबुल स्थित हेगीया सोफिया मस्जिद से ली थी।’
इस संदर्भ में स्वयं सिनान कहते हैं-” मैं इस धारणा को मिथ्या सिद्ध करना चाहता था कि हेगीया सोफिया जैसी संरचना का निर्माण असंभव है। सुल्तान के अनुरोध पर मैंने एक स्मारक, एक मस्जिद के निर्माण का काम हाथ में लिया था तथा हेगीया सोफिया मस्जिद के गुंबद से ऊंचे गुंबद का निर्माण करवाया।” इसकी ऊंचाई 31 मीटर है। सिनान ने मस्जिद निर्माण के लिए सर्वश्रेष्ठ तथा सुंदर स्थान चुना। मस्जिद के निर्माण में उस का श्रेष्ठ बुद्धिकौशल, सृजनात्मक डिजाइन तथा अपूर्व तकनीक परिलक्षित होती है। 2,475 वर्ग मीटर विशाल क्षेत्र में निर्मित मस्जिद में 384 खिड़कियाँ हैं इनसे आंतरिक भाग प्रकाश से आलोकित हो जाता है। खिड़कियों की संख्या में हेगीया सोफिया पीछे रह गयी है। रेम्ब्रां ने अपनी पेंटिंग्स में प्रकाश का उपयोग इसी भांति किया था।
मस्जिद की केंद्रीय संरचना को आकर्षक बनाने के लिए पारम्परिक शैली की भिन्न आकार वाली गुंबदों को डिजाइन से निकाल दिया। सिनान के विचार में छोटे तथा आंशिक गुंबदों का समूह विशाल गुंबद को ढक लेगा। केंद्रीय गुंबद को दर्शनीय बनाने के लिए बाहरी प्रांगण के चारों कोनों पर 71 मीटर ऊंची मीनारें मस्जिद के चारों ओर आकाश में राकेट के समान ऊपर उठती हुई दिखाई देती हैं। केंद्र में ऊपर की ओर उठते भव्य गुंबद पर आंशिक गुंबद, टावर तथा दीवारें हैं। मान्यता के अनुसार गोलाकार स्थापत्यशैली मानवीय एकता का प्रतीक तथा जीवन चक्र के सामान्य सिद्धान्त को प्रतिपादित करती है। मस्जिद के बाहरी तथा आंतरिक भाग की दृश्य,अदृश्य सममितियाँ ईश्वरीय संपूर्णता को साधारण पत्थर तथा गुंबद की सामान्य शक्तिशाली संरचना के माध्यम से प्रतिबिम्बित करती हैं।
संरचना में स्वच्छ, खुला आंतरिक भाग विशेष रूप से दर्शनीय है। बाहरी अलंकृत भाग ओटोमन साम्राज्य की शक्ति,समृद्धि का प्रतीक है। भीतरी सामान्य सममित भाग इस तथ्य को स्थापित करता है कि ईश्वर के साथ संवाद तथा संबंध को स्थापित करने के लिए सुल्तान को सदैव हृदय से विनम्र तथा आस्थापूर्ण होना चाहिए। भीतर प्रवेश करने से पहले शाही शान-ओ-शौकत, धन-वैभव तथा शक्ति को विस्मृत कर देना चाहिए। छोटी-छोटी खिड़कियों से छन कर आता प्रकाश, मद्धम रोशनी तथा अंधकार को दूर कर मानवीय तुच्छता को व्याख्यायित करता है।
विशाल परिसर में धार्मिक चिन्ह व अन्य विशिष्ट स्थल –
मस्जिद के भीतर इस्लाम के अनेक धार्मिक चिन्ह अंकित हैं। उदाहरण स्वरूप मस्जिद के नौ दरवाज़ों पर कुरान की आयतें उत्कीर्ण हैं। अद्वितीय विवरणात्मक संगमरमर की शिल्पकला, सुसज्जित टाइलें, काष्ठकला संरचना को भव्यता प्रदान करती है। मस्जिद की ओर जाते समय चार सुंदर मीनारें पर्यटकों का स्वागत करती हैं।
इस विशाल परिसर में मस्जिद के अतिरिक्त लायब्रेरी, हॉस्पिटल, स्कूल, मदरसा ( इस्लाम तथा विज्ञान का शिक्षण संस्थान इस्लामिक एकेडेमी) भी स्थित है। दार-उल-हदिश ( अल हदीथ स्कूल) तथा पंक्तिबद्ध दुकानें हैं। मस्जिद की लायब्रेरी में 2,000 हबुस्तलिखित पांडुलिपियाँ तथा 50 पुस्तकें संग्रहीत हैं।
रहस्यमय चित्रांकन-
मस्जिद का सर्वाधिक आकर्षक,रहस्यमय चित्रांकन है-‘ उलटा ट्यूलिप’। इतिहासकार अभी तक इस उल्टे ट्यूलिप के रहस्य को सुलझा नहीं पाएँ हैं। किंवदंती के अनुसार मस्जिद के स्थान पर पहले ट्यूलिप का गार्डन था। मस्जिद के लिए गार्डन के मालिक को अपना गार्डन बेचना पड़ा। ट्यूलिप गार्डन के बदकिस्मत मालिक के प्रति सहानुभूति दिखाने के विचार से ऐसा किया गया है। खेद प्रकट करने के लिए ट्यूलिप के फूल को उल्टा चित्रित किया गया है। सूर्यास्त के धूमिल प्रकाश में सेलेमिए मस्जिद का मुग्धकारी सौंदर्य अविस्मरणीय है।
बुल्गारिया द्वारा आक्रमण-
1913 ई में बुल्गारिया की तोपों ने एडरिने की मस्जिद के ऊपर गोले बरसाए। गुंबद के सुदृढ़ निर्माण के कारण मस्जिद को ज़्यादा क्षति नहीं पंहुची। मुस्तफा कमाल पाशा के आदेश पर क्षतिग्रस्त भाग की मरम्मत नहीं करवायी गयी ताकि भावी पीढ़ियाँ इससे सबक ले सकें। गुंबद का ऊपरी भाग तथा केंद्र के नीले क्षेत्र की बायीं तरफ गहरे लाल रंग के केलिग्राफ के समीप का क्षतिग्रस्त भाग आज भी देखा जा सकता है।
तुर्की 1982-1995 के 10,000 लीरा के नोट के पीछे सेलेमिये मस्जिद का चित्र अंकित है। मस्जिद अपनी अन्य संरचनाओं सहित 2011 ई में यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत की सूची में सम्मिलित कर ली गयी थी।
केंद्र में स्थित होने के कारण मस्जिद तक सुगमतापूर्वक पंहुचा जा सकता है। इस्तांबुल जाएँ तो एडेरिने स्थित सेलेमिये मस्जिद को देखना न भूलें। यहाँ पर तुर्की के स्वादिष्ट व्यंजनों का स्वाद भी चखा जा सकता है।
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प्रमीला गुप्ता