विश्व इतिहास आश्चर्यजनक रहस्यों से भरा पड़ा है। उनमें मिस्र के पिरामिड आज भी मानव मस्तिष्क के लिए रहस्यमय पहेली बने हुए हैं। उनकी संरचना के रहस्य को अभी तक सुलझाया नहीं जा सका है।
पिरामिड निर्माण में निहित भावना-
एक समय मिस्र की सभ्यता की गणना विश्व की सर्वाधिक शक्तिसंपन्न और वैभवशाली सभ्यताओं में होती थी। मिस्र के तीसरे राजवंश का सम्राट जोसर प्रजाप्रेमी था। प्रजा भी सम्राट का सम्मान ईश्वर के चुने हुए प्रतिनिधि के रूप में करती थी। सम्राट जोसर की मृत्यु के उपरांत मिस्रवासियों ने अपने प्रिय सम्राट की आत्मा को शरीर के साथ संरक्षित रखने के विचार से दफनाने से पहले लेप लगा कर शरीर को संरक्षित कर दिया। शव के साथ खाने-पीने की सामग्री,वस्त्र, आभूषण,वाद्ययंत्र, शस्त्र-अस्त्र, यहाँ तक कि सेवक-सेविकाओं को भी दफना दिया गया। 263 ई पू के आसपास जोसर की कब्रगाह के रूप में मिस्र के सबसे पिरामिड का निर्माण हुआ था। यह सकारा में स्थित है। उसके बाद तीसरे और चौथे राजवंश के सम्राटों ने पिरामिड निर्माण की परम्परा को आगे बढ़ाया।
पिरामिडों का देश मिस्र-
आरंभ में मिस्र की राजधानी मेम्फीस थी। मेम्फी स के पुरातत्त्वशेष वर्तमान राजधानी काहिरा के 40 कि.मी दक्षिण में नील नदी के पश्चिमी तट पर अवस्थित हैं। नील नदी के पश्चिमी तट पर एक शाही कब्रिस्तान है। यहाँ पर सम्राटों द्वारा निर्मित 138 पिरामिड हैं। संभवतः इसीलिए मिस्र को ‘पिरामिडों का देश’ कहा जाता है। चोर-लुटेरे उनके भीतर रखे बहुमूल्य सामान को चुरा न लें इसलिए पिरामिडों की संरचना अतीव जटिल होती थी। प्रायः सम्राट अपने जीवनकाल में ही एक भव्य, विशाल पिरामिड का निर्माण करवा देता था। शव को पिरामिड के केंद्र में दफनाया जाता था।
मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक सी बात है कि जब मृत सम्राटों की कब्रगाह (पिरामिड) इतनी भव्य है तब उनके राजप्रासाद इन स्मारकस्थलों से अधिक वैभवसम्पन्न और विशाल होंगे। उन भव्य स्थानों के अवशेष तो आज कहीं भी देखने को नहीं मिलते जब कि ये प्रस्तर स्मारक आज भी विद्यमान हैं।
गिज़ा का ग्रेट पिरामिड-
जो भी कारण हो यह एक तथ्य है कि ये पिरामिड मिस्र के गौरवशाली अतीत के साक्षी हैं। वैसे तो मेम्फीस में 138 पिरामिड तथा काहिरा के उपनगर गिजा में तीन पिरामिड हैं लेकिन इन में से ‘दी ग्रेट पिरामिड’ ही सर्वाधिक आकर्षण का केंद्र है। यह विश्व के प्राचीन सात अजूबों में से एक है। अन्य छह कालप्रवाह में क्षतिग्रस्त हो गए लेकिन यह आज भी उन्नत मस्तक के साथ खड़ा है। 1979ई में यूनेस्को ने मेम्फीस के पुरातत्त्वशेषों सहित इन पिरामिडों को भी विश्व धरोहर घोषित कर दिया था।
चतुर्थ राजवंश के तीन सम्राटों खुफू, खफ्रे, मे-कुरे ने गिज़ा में इन पिरामिडों का निर्माण करवाया था। इन तीनों में खुफू का पिरामिड सबसे बड़ा है। इसको ‘दी ग्रेट पिरामिड’ कहा जाता है। ‘दी ग्रेट पिरामिड’ 450 फीट ऊंचा है। 4300 वर्षों तक यह विश्व की सर्वोच्च संरचना थी। 19वीं शताब्दी में उसका यह रिकार्ड टूट गया। इसका आधार 13 एकड़ भूमि पर फैला है जो लगभग 16 फुटबाल के मैदानों के बराबर है।इसके निर्माण में 25 लाख चूना-पत्थरों के खंडों का उपयोग हुआ है। पुरातत्त्वविशेषज्ञों के अनुसार 2560 ई पू मिस्र के सम्राट खुफू ने स्मारक के रूप में इसका निर्माण करवाया था तथा इसके निर्माण में लगभग 23 वर्ष का समय लग गया था। यह पिरामिड इतनी परिशुद्धता से निर्मित है कि आधुनिक विकसित तकनीक द्वारा भी ऐसी संरचना का निर्माण संभव नहीं है।
पिरामिड की संरचना-
गिज़ा का यह ग्रेट पिरामिड वर्गाकार है।नाप-जोख के लिए लेजर किरणों जैसे उपकरणों का आविष्कार होने से पहले वैज्ञानिक सूक्ष्म सिमिट्रीज़ (सममिति) का पता लगाने में असमर्थ थे लेकिन इसके निर्माण में ज्यामितीय शुद्धता का पूरा ध्यान रखा गया है। चारों भुजाएँ लगभग बराबर हैं। उन के माप में केवल कुछ से.मी का ही अंतर है जो इसकी विशालता को देखते हुए नगण्य है। पिरामिड के चारों कोने समकोण हैं। मूलरूप में इसकी ऊंचाई 146 मीटर थी लेकिन समय के अंतराल में अब केवल 137 ही रह गयी है।
ग्रेट पिरामिड का प्रवेशद्वार उत्तरी दिशा में भूतल से पाँच मीटर ऊपर है। प्रवेशद्वार अड़तालीस स्तंभों पर आधारित था। भीतर प्रवेश करने पर पहले रानी का शावकक्ष और फिर राजा का शवकक्ष आता है। राजा के शवकक्ष में लाल ग्रेनाइट पत्थर की खाली शवपेटी मिली है। राजा के शवकक्ष के चारों तरफ एक सुरंग है। अनुमान है कि इसी सुरंग से नील नदी का पानी पिरामिड के नीचे बहता था। इसके दोनों तरफ मंदिर निर्मित थे। मंदिरों के अब अवशेष ही बचे हैं। पिरामिड का भाल हल्का करने के लिए इस कक्ष के ऊपर पाँच कक्ष और बनाए गए थे। नींव में पीले रंग का चूना-पत्थर इस्तेमाल किया गया था लेकिन बाहर की तरफ बहुत अच्छी क्वालिटी का चूना-पत्थर लगाया गया है।
प्रसिद्ध स्फ़िंक्स प्रतिमा-
पिरामिड के समीप ही चौदह मीटर ऊंची प्रतिमा स्थित है। इसकी मुखाकृति मानव की तथा शेष भाग सिंह का है। यह स्फ़िंक्स के नाम से विश्व प्रसिद्ध है।
निर्माण-
ग्रेट पिरामिड के निर्माण में लगभग 23 लाख पाषाण खंडों का प्रयोग हुआ है। प्रत्येक पाषाण खंड का औसत भार ढाई टन है। कुछ पत्थरों का वज़न तो 16 टन से भी ज़्यादा है। यदि इन पत्थरों को 30 से.मी के टुकड़ों में काट दिया जाए तो उनसे फ्रांस के चारों तरफ एक मीटर ऊंची दीवार बन सकती है।
आधुनिक वास्तुशिल्प द्वारा ग्रेट पिरामिड जैसी संरचना का निर्माण कर पाना असंभव है। इसके निर्माण की तकनीकी दक्षता और इंजीनियरिंग आज भी वास्तुविदों के लिए एक चुनौती बनी हुई है। उस समय जब क्रेन जैसे यंत्र का आविष्कार नहीं हुआ था तब इतने विशाल,भारी पाषाण-खंडों को इतनी ऊंचाई पर कैसे लगाया गया होगा। अधिकांश विद्वानों के मतानुसार उन लोगों ने पिरामिड तक एक ढलुआं रास्ता बना लिया होग और निर्माण कार्य के आगे बढ़ने के साथ-साथ वे उस रास्ते को भी ऊंचा करते गए होंगे। लकड़ी की बल्लियों के सहारे अथवा पहिये वाले लकड़ी के ढांचों पर रख कर पत्थरों को इस ढलुआं रास्ते से ऊपर पिरामिड के निर्माण स्थल तक ले जाते होंगे।
यूनानी इतिहासकार हेरोडोटस के अनुसार नदी से लेकर पिरामिड तक पाषाण खंडों को पंहुचाने के लिए ढलुआं रास्ता बनाने में ही दस साल लग गए होंगे। उनके अनुसार इस विशाल पिरामिड को बनाने के लिए एक लाख आदमियों ने 20 साल काम किया होगा। आधुनिक विद्वानों के मतानुसार हेरोडोटस का यह कथन अतिशयोक्तिपूर्ण है। उनके अनुसार पिरामिड के निर्माणस्थल पर 36,000 से ज़्यादा व्यक्ति एक साथ काम नहीं कर सकते थे। संभवतः हेरोडोटस ने उन लोगों की गणना भी कर ली हो जो पिरामिड के लिए ढलुआं रास्ता बनाने तथा और दूसरे कामों में लगे हों।
विशिष्टताएँ –
वास्तुशिल्प की बात तो अलग है, मिस्रवासी खगोलविद्या और गणित के भी गहन ज्ञाता थे। पत्थरों को इतनी कुशलता से तराश कर फिट किया गया है कि उनके बीच एक ब्लेड भी नहीं घुस सकता है। पिरामिड ओरियन राशि के तीन तारों की सीध में है। पिरामिड को सूर्यदेवता ( मिस्रवासी जिस को माट कहते हैं) के नियमानुसार बनाया गया है। जब सूर्य की किरणें इस की दीवारों पर पड़ती हैं तो वे चांदी की तरह चमकने लगती हैं।
पिरामिड को भूकंप से सुरक्षित रखने के लिए उसकी नींव के चारों कोनों में बॉल और साकेट बनाए गए हैं।
ग्रेट पिरामिड पाषाण के कंप्यूटर जैसा है। इसके किनारों की लम्बाई, ऊंचाई और कोनों को मापने से पृथ्वी से संबन्धित भिन्न-भिन्न चीजों की सटीक गणना की जा सकती है।
ग्रेट पिरामिड में पत्थरों का उपयोग इस प्रकार किया गया है कि इसके भीतर का तापमान हमेशा स्थिर और पृथ्वी के औसत तापमान 20 डिग्री सेल्सियस के बराबर रहता है।
तत्कालीन मिस्रवासी पिरामिड का उपयोग वेधशाला, कैलेंडर, सन डायल और सूर्य की परिक्रमा के समय पृथ्वी की गति तथा प्रकाश के वेग को जानने के लिए भी किया जाता था।
पिरामिड को गणित की जन्मकुंडली भी कहा जाता है। इससे भविष्य की गणना की जा सकती है।
पिरामिड अपने विशाल आकार, अद्वितीय वास्तुशिल्प तथा मजबूती के लिए विश्वविख्यात हैं। इसमें खगोलीय विशेषताएँ भी विद्यमान हैं लेकिन सबसे विलक्षण गुण हैं। इन का जादुई प्रभाव । वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध हो गया है कि पिरामिड के भीतर विलक्षण ऊर्जा तरंगें निरंतर सक्रिय रहती हैं जो जड़ और चेतन दोनों प्रकार की वस्तुओं पर प्रभाव डालती हैं। इस विलक्षणता को ‘पिरामिड पावर’ की संज्ञा दी गयी है।
अब यह नयी अवधारणा चिकित्सा जगत में ‘पिरामिडोलोजी’ के नाम से लोकप्रिय होती जा रही है। पिरामिड के आकार की संरचना के भीतर बैठने से सिर दर्द,दाँत दर्द से छुटकारा मिल जाता है। आधुनिक अनुसंधानकर्ता बोबिस ने पिरामिड के आकार की टोपी बना कर पहनी और इस बात को आज़माया। बोबिस का मानना है कि इसको पहनने से दर्द तो दूर हो ही जाता है , अन्य कई प्रकार के मानसिक रोग भी दूर हो जाते हैं।
वैसे तो मिस्र में अनेक ऐतिहासिक पर्यटन स्थल हैं लेकिन इन पिरामिडों का आकर्षण ही अलग है,विशेष रूप से गिज़ा के ग्रेट पिरामिड का । प्रतिवर्ष लाखों पर्यटक इन पिरामिडों को देखने के लिए मिस्र पंहुचते हैं।
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प्रमीला गुप्ता